प्रत्येक व्यक्ति को अपने निवास स्थान का निर्माण वास्तु के आधार पर ही कराना चाहिए । यदि वास्तु के नियमों का पालन किया जाता है तो निश्चय ही व्यक्ति धन धान्य से संपन्न हो जाता है । बहुत ही गरीब व्यक्ति की भी स्थिति सुधर जाती है । इसी कारण, लोग दिन-प्रतिदिन वास्तु के नियमों के बारे में सोचने लगे हैं । इस बात को आप भली-भांति समझले की सीढ़ियों से ही प्राणिक ऊर्जा ऊपरी मंजिल तक पहुंचती है । वास्तु में सीढ़ियों का विशेष महत्व है । भवन के पश्चिम-दक्षिण के कोने यानी नेतृत्व कोण में सीढ़ी सबसे अधिक उपयुक्त होती है । नेतृत्व कोण पर सीढ़ी बनाने से इस दिशा का भार बहुत बढ़ जाता है और वास्तु की दृष्टि से बहुत ही शुभ होता है ।
घर की सीढ़ियां बनाते समय वास्तु के अनुसार निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- अधिकांश लोग सीढ़ियां ऐसी बनाते हैं जो अधिक जगह घेरे हुए होती है, उसके नीचे किचन, पूजा गृह, बाथरूम, शौचालय, स्टोर रूम, अदि बना देते हैं । लेकिन ऐसा करके लोग अपने सर पर परेशानियों का बोझ लाद लेते हैं । सीढ़ियों के नीचे कुछ भी नहीं बनाना चाहिए । सीढ़ियों का निर्माण इस प्रकार से कराएं कि वे कम से कम स्थान घेरे ।
- ईशान कोण बहुत ही पवित्र तथा नाजुक होता है । इस स्थान को किसी भी प्रकार से क्षति न पहुंचायें । ईशान कोण के न तो उत्तरी दीवार पर और ना ही पूरी दीवार पर सीढ़ी बनायें नहीं तो जीवन भर कष्ट का सामना करते रहेंगे ।
- सीढ़ी के लिए सबसे उपयुक्त स्थान नेतृत्व कोण पर होता है, इस दिशा में स्वास्थ्य अच्छा रहता है । संपत्ति में वृद्धि होती है ।
- आग्नेय कोण की पूर्वी दीवार, दक्षिण दिशा के बीचो-बीच सीढ़ियों का निर्माण किया जा सकता है । पश्चिम दिशा में भी सीढ़ी वायव्य कोण में पश्चिम दीवार से ऊपर चढ़ाकर बनाया जा सकता है ।
- अगर आपके घर में पहले से उत्तर पूर्व के कोण में सीढ़ी बनी है तो पहले उसको हटाने की कोशिश करें । अगर हटाना संभव ना हो तो दक्षिण-पश्चिम की तरफ एक कमरा बनाये जो कि ईशान कोण के कमरे वाले छत से ऊंचा हो । दक्षिण-पश्चिम के कोने में एक तांबे का झंडा लगाएं, जो कि घर से सबसे ऊंचा हो । सीढ़ियों के ऊपर और नीचे, उत्तर व पूर्व की दीवारों के कोने में आइना लगाएं, ताकि उसमें आपका पूरा प्रतिबिम्ब आ सके ।
- सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए । जैसे 5, 9, 11, १3, १5 अदि ।
- सीढ़ियों में कभी भी कोई शुभ मंत्र या इष्ट देव की मूर्ति या फोटो नहीं लगाना चाहिए । साथ ही भवन के गोलाई दार सीढ़ी बनाना वास्तु के विरुद्ध है ।
- सीढ़ियों के शुरू व अंत में दरवाजा होना वास्तु नियमों के अनुसार शुभ होता है । लेकिन नीचे का दरवाजा ऊपर के दरवाजे के बराबर या थोड़ा बड़ा हो, इसके अलावा एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी का अंतर 9 इंच सबसे उपयुक्त माना जाता है ।
- घर के बीच में अथवा घर में प्रवेश करते ही एकदम ऊपर जाती हुई सीढ़ियां नहीं होनी चाहिए ।
- सीढ़ियां इस प्रकार हो कि चढ़ते समय पश्चिम अथवा दक्षिण दिशा की ओर से चढ़ा जाए और उतरते समय चेहरा उत्तर या पूर्व की ओर हो । सीढ़ियां चढ़ते-उतरते समय मध्य स्थान पर मुह उत्तर, पूर्व, दक्षिणी आग्नेय दिशा की ओर शुभ माना जाता है ।
- भवन के प्रवेश द्वार में जाने के लिए बाहर की सीढ़ियों की सबसे अच्छी दिशा ईशान कोण होता है । ईशान कोण के उत्तरी अथवा पूर्वी दीवारों पर प्रवेश द्वार के नीचे की ऒर बनी सीढ़ियां शुभ होती हैं ।
- अगर किसी मकान के मुख्य द्वार वायव्य कोण की उत्तरी दीवार पर है तो ऐसे में बाहरी सीढ़ियां उत्तरी दीवार पर पूर्व से उत्तर की ओर चढ़ानी चाहिए । यदि मुख्य द्वार वायव्य की पश्चिमी दीवार पर है तब पश्चिम से उत्तर की ऒर बाहरी सीढ़ियां द्वार तक ले जाएं । अगर अगर भवन का प्रवेश द्वार नेतृत्व या आग्नेय कोण में दक्षिण दिशा में स्थित हो तो प्रवेश द्वार तक सीधी सीढ़ियां, ऊपर तक होनी चाहिए ।
- भवन का प्रवेश द्वार दक्षिण में या पश्चिम होने पर सीढ़ियां बड़ी और चौड़ी रखनी चाहिए ।इससे धन वृद्धि होती है । ईशान कोण के उत्तरी एवं पूर्वी मुख्य द्वार की सीढ़ियां जहां तक नीचे की ओर ले जा सके ले जाएं ।